" बोर हो रहे हैं.. " मुझे ऐसा लगता है, कि ये पंक्ति तो आज सबसे ज्यादा 'ध्वनि-प्रदूषण' कर रही है. दो मित्र एक दूसरे से मिलेंगे, तो परस्पर हाल-चाल पूछने के बाद यही बात, कि आपके यहाँ क्या नया चल रहा है, हम तो बस बोर हो रहे हैं..! हर दिन इर्द-गिर्द बढ़ती ऊब, और झल्लाहट..! बोरियत नाम का ये रोग किसी भी वाइरस से ज्यादा संक्रामक मालूम होता है. " कुछ नयी बात ही नहीं है, बासा-पुराना सा लगता है सब कुछ.." .. एक आम शिकायत! मगर मुझे तो ऐसा लगता है, कि हमारे इर्द-गिर्द इतना कुछ नया-ताज़ा है, बस हम ही उसे पूरी तरह से देख तक भी नहीं पाते हैं.
घास पर बैठ कर फूल-पौधे देखते हुए मुझे हैरानगी होती रहती है, .. एक छोटी-सी कली का खिलकर एक संपूर्ण सौंदर्य की अभिव्यक्ति हो जाना, उसके बाद बिना माँगे ही हवा को अपना पराग देना.. खुशबू बिखेरना .. अपने आप में कितने सुखद आश्चर्य के जैसा होता है ये सब ..! और फिर उस पर तितलियों का, बिना किसी चिट्ठी-पाती के ही आ जाना, अपने सुन्दर-सजावटी पंख खोलना-बंद करना.. यहाँ से वहाँ मंडराना..! जीवन में जैसे, एक महक-सी आने लगती है इन तितलियों की चंचलता देखते-देखते ही..
सुबह सूरज की अंगड़ाई के साथ ही पंछियों का कलरव..! पूरे आकाश को स्वरित कर देते हैं ये नन्हे जीवंत खिलौने. रोज़-रोज़ की एक-सी उड़ान लेते इन पंछियों का उत्साह एक भी दिन कम नहीं होता.
कहते हैं , कि आप मानव हैं, इसलिए आप मुस्कुरा सकते हैं. सृष्टि में और किसी जीव को ये 'मुस्कराहट' नामक उपहार प्राप्त नहीं हुआ है. मगर मुझे तो ऐसा लगता है, कि मानव तो सिर्फ होठों से मुस्कुराता है, ये रंग-बिरंगे पंछी तो रोम-रोम से मुस्कान ही मुस्कान बिखेरते रहते हैं. पर हाँ, इतना तो मानना ही पड़ेगा,कि 'शिकायत' करने वाला तो मानव अकेला ही है पूरी सृष्टि में.
सोचने की बात है..कि वो क्या है, जो हर दिन, हर पल इन परिंदों, तितलियों को, और पेड़-पौधों को जीवन दिए रहता है..! न तो उनके पास रहने के लिए सुन्दर घर, न ही महँगी गाड़ियां.. और न ही बेशकीमती नग-नगीने..!
मानव के पास तो सब कुछ है, फिर भी वो 'बोर' होता रहता है, और ये निरीह, भोले जीव, कुदरत के नए-नए रंगों को देख-देख कर ही उमंग से भरे रहते हैं..
मानव के पास तो सब कुछ है, फिर भी वो 'बोर' होता रहता है, और ये निरीह, भोले जीव, कुदरत के नए-नए रंगों को देख-देख कर ही उमंग से भरे रहते हैं..
कुछ तो बात है प्रकृति में.. !!
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