Saturday 6 August 2011

कैसी है ये मुस्कान...

                           मन को कुछ अच्छा लगता है , और हम मुस्कुराने लगते हैं | और फिर ढेर सारे  कॉम्प्लिमेंट्स .. जो कि उस मुस्कान को और भी बड़ा कर देते हैं |
                           कहते हैं, कि जो बेगानों  को भी अपना बना दे, वो होती है हमारी एक 'मुस्कान'. सिर्फ एक मुस्कान नयी दोस्ती की शुरुआत करने के लिए बहुत होती है. माता-पिता अपने बच्चों की एक मुस्कान के लिए क्या नहीं करते ! यहाँ तक भी कहा जाता है, कि मुस्कान आत्मा की  भाषा होती है | फिर एक अजीब सा विचार आता है मन में , कि क्या मुस्कान की भी कुछ श्रेणियां होनी चाहियें .. जैसे कि .. अमीर की मुस्कान, गरीब की मुस्कान, आकर्षक मुस्कान, साधारण मुस्कान, अनाकर्षक मुस्कान .. क्योंकि, भले ही हम लाख कह लें, लेकिन ये तो सच है, कि हम हर एक मुस्कान को अलग ढंग से ही स्वीकार करते हैं, और उसका अलग ही जवाब देते हैं | यानी कि, एक स्वाभाविक क्रिया का अस्वाभाविक उत्तर.. 
                           और यही सोच कर लगता है, कि जो मन के विशुद्ध भाव मुस्कान के ज़रिये हम ज़ाहिर कर रहे हैं, अगर उन में ही प्रत्युत्तर मिलावटी होगा, तो स्वाभाविकता का क्या मोल बचता है ..? एक नन्हा-सा बच्चा जब मस्ती से किलकारियां भरता है, तो उसके पास बैठा हुआ कोई भी उसे लाड लडाने लगता है |लेकिन बहुत बार ऐसा नहीं भी होता , जब वो बच्चा किसी गरीब का होता है, या फिर देखने में आकर्षक नहीं होता | 
                           ये सब देख-सोच कर एक सवाल मन में उठता है, कि क्या सचमुच वो मुस्कान ही  है, जो बेगानों को भी अपना बनाती है, या फिर रूप और धन..?? और फिर याद आता है, कि अब तो नया ज़माना है.. अब यहाँ मान-दंड बदल गए हैं. वो दिन अब नहीं रहे , कि जब मुस्कान में अपनेपन का जादू होता था.. अब उपभोक्तावाद का युग है.. सब कुछ चकाचौंध से ही अच्छा लगता है.. तो, छोड़ कर मुस्कुराना , पैसे की चमक-दमक का इन्तज़ाम करना ही समय की मांग है. क्योंकि हम भी तो दूसरों को तभी पसंद करते हैं न , जब वो हमें अपनी अमीरी का नशा दिखाते हैं.
                         लेकिन एक और भी नजरिया है.  आज के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए, तो मुस्कान भी उपभोक्तावाद का एक संसाधन ही लगती है. आज का आदमी मुस्कान का निवेश वहाँ करना पसंद करता है, जहां से उसके कुछ 'लिंक्स' बन सकें..जिससे समाज में उसकी पैठ बन सके, और करियर का ग्राफ ऊपर उठ सके. और इस नज़रिए से देखा जाए, तो ... ठीक है, मुस्कान आज सफलता का छोटा रास्ता हो गया है. तो फिर सोचना क्या है, नहीं भूलेंगे इस मुस्कान को.. चलते रहेंगे अपने रास्ते पर, और जैसे ही कोई मौका नज़र आयेगा , खुद से ही कहेंगे, कि " मुस्कुराइए "
                           और मुस्कुरा देंगे फिर हम भरपूर आत्मीयता के साथ, ( झूठी ही सही) ... कौन जानता है, शायद हमारी ये एक मुस्कान ही हमारी 'लाइफ' बना दे.. !



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