Sunday 25 August 2013

चिकित्सक यानि जीवनदाता???

चिकित्सक को भगवान का रूप माना जाता है। भगवान् के इस रूप के दर्शन पिछले कुछ महीनों से मुझे कुछ ज्यादा ही हो रहे हैं, कभी अपनी ही किसी छोटी-मोटी समस्या से, तो कभी किसी संगी-साथी की तकलीफ के कारण। हर बार एक अजीब बात समान रूप से मुझे दिखती है। आजकल चिकित्सक रोगी से यह नही पूछते कि क्या हुआ, क्या समस्या है! वरन खुद ही कुछेक सवाल कर लेने के बाद, कोई टेस्ट (परीक्षण) कराने की सलाह (निर्देश) दे देते हैं, और उसके बाद अगले रोगी को देखने लगते हैं।
परीक्षण के नतीजे देखने के बाद रोगी को दवाओं की एक लम्बी-सी पर्ची थमा दी जाती है, बिना ही उसे यह बताये, कि उसे हुआ क्या है। और इसके साथ ही, दस-पंद्रह दिन के पश्चात पुन: दर्शन हेतु आने को बता दिया जाता है।
अपना-सा मुँह लेकर हर बार हम बाहर निकल आते हैं।

ये सब देखकर मेरे मन में विचारों की उठापटक तो होनी ही है, सो होती ही है। चिकित्सक यानि जीवनदाता। जब कोई गंभीर समस्या से जूझ रहा होता है, तो उसे जीने की आशा ले कर जाती है चिकित्सालय की ओर। कहते हैं, कि अपने हिस्से की साँसें तो हर कोई गिनवा कर ही लाया करता है न कोई इन साँसों की संख्या बढ़ा सकता है, और न कोई घटा ही सकता है। लेकिन स्वास्थ्य की पटरी से उतरी जीवन की रेल को पटरी पर वापिस तो ला ही सकते हैं चिकित्सक। बेबस रोगी स्वास्थ्य की आशा लेकर चिकित्सक के पास आते हैं, और पूर्ण समर्पण कर देते हैं। अपने जीवन को बचाने के लिए किसी पर कितना विश्वास कर के आये हुए होते होंगे वे! अपने दिमाग की बत्ती को हर समय जगाये रखना, सही समय पर सही तरीके से रोग दूर करने का उपाय करना, और पूरी सजगता से रोगी के स्वास्थ्य-सुधार पर नजर रखना, चिकित्सक का यह काम कतई आसान नहीं है! दवाई जरुर वे कड़वी-कड़वी देते हैं, पर मीठे-मीठे जीवन को बचाने के लिए यह कोई बड़ी दिक्कत वाली बात नहीं है।
पर जहां दुनिया का सबसे महान काम हो रहा है, वहां नोटों की चकाचौंध आ जाए तो कुछ गड़बड़ हो ही जाती है। कई बरस पहले की एक छोटी-सी बात भी कहीं से याद आ रही है। मेरी दादीजी एक चिकित्सक के क्लिनिक पर दवा लेने के लिए गयी। क्लिनिक के बाहर नीम्बू-मिर्ची टंगे दिखे तो उन्होंने पूछा, कि डाक्टर साहब, यह किसलिए? चिकित्सक ने उत्तर दिया, कि इसे टांगने से धंधे में बरकत रहती है। दादीजी ने पलटकर सवाल किया कि तब तो आप यही चाहते होंगे कि ज़्यादा से ज़्यादा लोग बीमार पड़ते रहें, ताकि आपके यहाँ मरीजों की कतार लगी रहे। चिकित्सक से इस सवाल का कोई जवाब न बना, उसका मुंह देखने लायक था। प्रकट रूप से ऐसा प्रश्न शायद उस चिकित्सक ने कभी अपेक्षित नहीं किया होगा। पर उत्तर तो सब समझ ही गए थे। मेरी जानकारी के बहुत से चिकित्सक हैं जो अपना चिकित्सा धर्म पूर्ण निष्ठा से निभाते हैं। पर समाज के कुछ गलियारों में ऐसे भी कुछ चेहरे हुआ करते हैं, जो इस जीवनदाता की भूमिका पर प्रश्नचिह्न लगा ही देते हैं। ऑपरेशन बिना जरूरत के ही कर दिया जाए! और ऑपरेशन के कई बरस बाद यदि मरीज़ को मालूम हो पाए कि उसके शरीर से एक गुर्दा चोरी हो चुका है, तो कैसा लगता होगा उसे! 
ऐसी बहुत-सी और भी बातें होती हैं जो हर बार अखबारों की सुर्खियाँ तो नहीं बन पाती, लेकिन जब हमारे आस-पास घटित होती हैं तो मन बहुत दुखता है। पैसा इतनी भी बड़ी चीज़ तो नही होती कि जिसे सामने वाले के विश्वास की आड़ में ऐंठ लिया जाये! कोई हमे इंसानी स्तर से इतना ऊपर, अपना 'भगवान' बनाने को तैयार बैठा है, पर हम इंसान से भी नीचे के स्तर के कुछ बनने में कितने खुश हो जाते हैं! नैतिक पतन का इलाज अब कौन सा चिकित्सक कर पायेगा?