Wednesday 15 August 2012

स्वतन्त्रता दिवस पर...

15 अगस्त, भारत का स्वतन्त्रता दिवस, यह वो दिन है जब हमारी मातृभूमि सही अर्थों में 'हमारी' मातृभूमि हो पायी थी। निश्चित रूप से यह एक अद्वितीय अवसर है अपने मित्रों को बधाइयां-शुभकामनाएं देने का, खुशियाँ मनाने का, और एक राष्ट्रीय छुट्टी का मज़ा लेने का। स्वतन्त्रता का वह संग्राम कैसे लड़ा गया होगा, ऐसी सब बेकार की बातों से तो सर्वथा दूर रहने का समय है यह। आखिरकार, ये देशभक्ति जैसी बातें भला किसके काम की हैं?
देखा जाए तो यह तो एक उत्सव के जैसा दिन है। और हम भारतीय तो इतने उत्सवप्रिय-उल्लासी हुआ करते हैं, हमने हमेशा 'पलों' को जीने में विश्वास किया है। ऐसे में, इस महंगे पल को व्यर्थ करने का तो कोई कारण ही नहीं होना चाहिए। राष्ट्र की अस्मिता की परवाह और देशभक्ति जैसे फ़िज़ूल की बातें तो उन बेचारे पगले सैनिकों के लिए ही छोड़ दी जानी चाहिए, जो अपना घर-परिवार, घरेलु उत्तरदायित्व न जाने किस कर्तव्य की चाह में होम कर दिया करते हैं!
खैर अब और समय व्यर्थ न करते हुए और इस दिवस के उल्लास को कम न करते हुए मुझे बिना वक्त लिए कह देना चाहिए, कि  मेरे भारतवासियों,
आप सभी को स्वतन्त्रता दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
:- टिम्सी  मेहता   

[विनम्र कटाक्ष]


ये है मेरा असली भारत, जहाँ स्वतंत्रता के वास्तविक मायने स्पष्ट दीख रहे हैं....
                                             

Sunday 12 August 2012

स्मृतियों के आँगन से ..

बारिश की बूंदों में भी अनोखा-सा कुछ असर होता है. चंद बूंदों की ज़मीन पर ही बचपन के नज़ारे तैरते नज़र आने लगते हैं...  मेरे परनाना जी, जिन्हें हम बाबाजी कहते थे, लकड़ी की एक छड़ी लेकर चला करते थे. चार-पाँच बरस की उम्र में मुझे उस छड़ी, और हॉकी-स्टिक का फर्क समझ में नही आता था. स्कूल में हमें तस्वीरें देखकर खेल का नाम बताना होता था, और इसलिए मम्मी घर पर तैयारी कराया करती थी. बाकी सब खेलों के नाम तो मुझे ठीक-ठीक याद होते ही थे, पर हॉकी की तस्वीर देखकर हर बार मेरा एक ही जवाब होता था, 'बाबाजी का डंडा'. :D बड़ों को ये सुनकर हँसी आती थी, और मुझे कौतूहल होता था, कि सही ही तो कहा है मैंने, तो इसमें हंसने की क्या बात हुई! आज तक भी हॉकी को हमारे घर में 'बाबाजी का डंडा' ही कहा जाता है
कल शाम की बारिश के बाद से ही यह प्रिय स्मृति बार-बार याद आ रही है.