Tuesday, 13 September 2011

अमिताभ का अमित प्रभाव...



'पञ्चकोटि-महामणि', इस लुभावने शब्द्द्वय का उद्घोष करते हुए एक बार फिर आ गए हैं अमिताभ बच्चन, कौन बनेगा करोड़पति की प्रस्तुति करते हुए. और एक बार फिर, चर्चाओं के गलियारे में पूरी तरह छा गया है उनका नाम. जहाँ एक ओर बड़ी धनराशि का आकर्षण काम कर रहा है, वहीँ दूसरी ओर अमिताभ के प्रशंसक अपने मनपसंद अभिनेता की उपस्थिति पसंद कर रहे हैं. वैसे अमिताभ के प्रशंसकों के लिए तो उनकी उपस्थिति ही किसी पञ्चकोटि-महामणि के जैसी है. अगर इस देश में कभी सर्वाधिक लोकप्रिय व्यक्तियों का कोई चुनाव किया जाए, तो कोई छिपी हुई बात नहीं है कि अमिताभ का नाम उस सूची में बहुत ऊपर आएगा. कोई उनके जीवंत अभिनय का कायल है, और कोई उनकी आवाज़ का, कोई उनकी कद-काठी से प्रभावित है, तो किसी के लिए उनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व ही एक आदर्श है. और सिर्फ भारत ही क्यों, वैश्विक पटल पर भी उनका प्रभाव मद्धिम नहीं हो पाता. आज अमिताभ लोकप्रियता के उस शिखर पर खड़े हैं, जहाँ उन्हें देख तो सब सकते हैं, पर छू नहीं सकते. एक आम ज़िन्दगी से ख़ास मुकाम तक का उनका ये सफ़र किसी के लिए भी एक मिसाल है.
और वहीँ दूसरी ओर, कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें अमिताभ बच्चन से कोई विशेष लगाव नहीं है. हाँ, उनके प्रशंसकों को तो ये बात बहुत ही अटपटी लगेगी. पर बेशक, बहुत से ऐसे लोग हैं जो अमिताभ के प्रभाव से अछूते हैं, फिर भले ही ऐसे लोगों का वर्ग बहुत बड़ा न भी हो..! और ये सच है, कि मैं भी उसी छोटे-से वर्ग में से एक हूँ. बचपन से लेकर आज तक, पता नहीं कितनी सारी भूमिकाओं को विविधतापूर्वक निभाते हुए देखा होगा मैंने अमिताभ बच्चन को! पर फिर भी, आज तक कभी मेरी आँखों को उनके व्यक्तित्व की चकाचौंध चुंधिया नहीं पायी. अब ऐसा क्यों है, इस प्रश्न का तो कोई उत्तर नहीं है मेरे पास. स्वीकृति की बात है. यों  भी, पूरे समाज की स्वीकृति एकरंगी भला हो भी कैसे सकती है! अब वो उनका अभिनय-कौशल हों या फिर विज्ञापन-जगत में उनकी बढती पैठ, उनको मिलने वाले पुरस्कारों की संख्या, या छोटे परदे पर उनकी उपस्थिति, या चाहे उनके पूरे परिवार के साथ जुडी हुई अंतर्राष्ट्रीय ख्याति हो, पर इनमे से कोई एक भी कारण मुझे कभी उनके प्रशंसक-वर्ग की सदस्यता नहीं दिला पाया.
पर फिर भी एक बात है उनके जीवन से जुड़ी हुई, जो मेरी दृष्टि में मानवता पर निश्चय ही उनका उपकार है. मुझे याद है, आज से कई वर्ष पूर्व उनका एक साक्षात्कार टेलिविज़न पर प्रसारित हो रहा था. चैनल बदलते हुए, बस यों ही देखना शुरू कर दिया मैंने. उसमे वो बता रहे थे, कि हमारे देश के किसी एक प्रान्त के किसान ऋणग्रस्त होकर आत्मघाती प्रवृत्ति के शिकार हो रहे थे. बहुत से किसान अपने जीवन का अंत कर चुके थे, और बहुत-से और किसान उसी मार्ग की ओर उन्मुख होते नज़र आ रहे थे. केवल दो हज़ार से दस हज़ार रुपये की मामूली-सी ऋण-राशि का भुगतान कर पाने में असमर्थ ये किसान वर्षों से प्रकृति का प्रकोप सह रहे थे. और निकट भविष्य में भी, धन जुटा पाने की कोई दिशा बनती नज़र नहीं आ रही थी. ऐसे में, जीवन जीने की इच्छा का परित्याग ही उनके पास एकमात्र रास्ता था. 
अमिताभ बच्चन ने उस साक्षात्कार में बताया, कि जब उन्हें किसानों की उस त्रासदी के बारे में पता चला, तो उन्होंने बहुत से किसानों की आर्थिक सहायता करके उन्हें ऋणमुक्त कराया, और मृत्यु की ओर जाने से रोका. अपने व्यक्तिगत धन से किसानों की सहायता करके अमिताभ ने उन्हें जीवन की दिशा दी. आज ये बात याद कर मेरे मन में विचार आता है, कि अगर इस दुनिया में मानवता नाम की कोई देवी है कहीं, तो इस पुण्य कर्म के लिए निश्चय ही उन्होंने अमिताभ पर पुष्प-वर्षा की होगी. क्योंकि, ऐसा सुनकर भी असमंजस होता है, कि महज़ दो से दस हज़ार रुपये के लिए, कृषक-वर्ग अपने ही प्राण देने पर उतारू हो गया, और वो भी 'भारत' देश में, जो कि है ही कृषि-प्रधान..!!  
एक इंसान अपनी जान बचाने के लिए क्या नहीं करता! अगर कभी हम हस्पताल में पड़े किसी रोगी से मिलकर देखें, तो बातों-बातों में एक बार तो वो कह ही देगा, कि, "शुक्र है, जो मेरी जान बच गयी" या फिर, "बस ठीक हो जाऊ मैं, फिर पैसा तो भला कितना ही क्यों न लग जाए"...! अपने, या अपने परिजनों के जीवन, और स्वास्थ्य से ज्यादा महंगा हम लोगों को कुछ भी नहीं लगता. हम कुछ भी देने को तैयार हो जाते हैं, सिर्फ अपना जीवन बचाने के लिए! इतना अनमोल लगता है हमें अपना जीवन ! और ऐसे अनमोल जीवन का, महज़ कुछ हज़ार रुपयों के लिए जो अंत करने पर उतर आये हों, सोचने की बात है, ऐसी क्या बीती होगी उन किसानों के मन पर? जीवन जीने से आसान मरना जिन्हें लगा हो, खेद का विषय है, इतना संत्रास उन किसानों के हिस्से में आ गया...! एक संवेदनशील मनुष्य की आँखें डबडबाने  के लिए तो उन किसानो की भाव-स्थिति को समझना ही काफी होगा.
मृत्यु-संकट से घिरे ऐसे किसी व्यक्ति को जीवन-दान देना शायद हम सब के बूते की बात होगी. अगर हम सब अपने-अपने स्तर पर छोटी-छोटी कोशिशें भी करें, तो शायद समाज की बहुत सारी परेशानियां दूर हों जाएँ! लेकिन ऐसी इच्छा-शक्ति हर-एक में कहाँ..! अपने छोटे-से परिवार के लिए जीना तो हमें अच्छी तरह आता है, पर किसी मजबूर की मदद के लिए हमारे पास न वक्त है, न धन है, और न ही कोई योजना. सिमट चुके हैं हम सब लोग अपने-अपने पारिवारिक जीवन के छोटे-छोटे दायरों में. और उन दायरों के बाहर झाँकना आज हमारे लिए मूर्खता भी है, और अप्रासंगिकता भी.
ऐसे में, और किसी बात के लिए तो पता नहीं, पर इस बात के लिए तो, हाँ, अमिताभ ! आपके प्रेशंसक-वर्ग में शामिल होना अब मेरी मजबूरी हों चुकी है. ईश्वर आपको सदा ही इस मानवीय इच्छा-शक्ति से युक्त रखे, असहाय की सहायता के लिए. 
शुभ-कामनाएं, भारत..!!

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