Sunday 4 March 2012

वो मुस्कान . . .

कभी-कभी आप कुछ ऐसे लोगों से मिल जाते हैं, जिनके बारे में आप कुछ नहीं जानते, लेकिन उनको कभी भुला नहीं पाते. कुछ समय पहले की बात है. एक बिल जमा करवाने के लिए एक दुकान पर जाना हुआ. पांच-दस मिनट की देर थी मेरी बारी आने में. सो मैंने वहीँ एक कुर्सी पर बैठकर इंतज़ार करना शुरू कर दिया. इधर-उधर नज़रें घूमने का सिलसिला भी शुरू हो गया. इतने में, एक स्पर्श महसूस किया, अपने हाथ पर. और तुरंत ही गर्दन उस ही दिशा में घूम गयी. ये मानव-मस्तिष्क, इतने में ही कयास भी लगा लिए मैंने, कि ज़रूर कोई पुरानी सहेली होगी, क्योंकि उस स्पर्श में मुझे कुछ अपनापन महसूस हुआ था. और जब देखा उस ओर, तो वो थी एक-डेढ़ साल की एक छोटी-सी अनजान बच्ची..

ज्यों ही उसकी ओर देखा, उसकी मुस्कान ने मुझे संक्रमित कर दिया, मेरा मुख भी मुस्कान से खिल गया. हाथ खुद ही उसके गालों पर जा लगा, और मैंने एक हल्की-सी चिकोटी काट ली उसके कोमल गालों पर. वो फिर भरपूर मुस्कुराई, और मैं भी. इसके बाद, कुछ पल के लिए मैंने दूसरी ओर देखना शुरू कर दिया, और घूम-फिर कर नज़रें फिर से उसी गुड़िया पर ही आ टिकी. वो तो पहले से ही मेरी ही ओर देख रही थी. मुस्कुराहटों के आदान-प्रदान का दौर फिर से शुरू हो गया. ख़ास बात ये थी, कि वो मुस्कान इतनी अद्भुत थी, उस बच्ची की मुस्कान में कहीं कोई दूसरा भाव तो था ही नहीं, सिर्फ और सिर्फ ख़ुशी.. ! एक ऐसी नि:स्पृह ख़ुशी, जिसे आज के समय में एक विलुप्त भाव की संज्ञा ही दी जा सकती है. मुझे बार-बार उसको देखना बहुत अच्छा लग रहा था, और उसे भी मुझे देखना अच्छा लग रहा था, जिसका प्रमाण थे, हम दोनों के खिले हुए चेहरे. उसकी ख़ुशी से भरी हुई आँखें ये बता देती थी मुझे, कि उसे भी इंतज़ार होता था, मेरा उसकी ओर देखने का. और वैसे भी डेढ़ साल का बच्चा भला अपने भाव ज़ाहिर करने से डरता थोडा ही है, ये भाव छिपाने की कला तो दुनियादारी सिखाती है, बड़ों को..
बड़ों की दुनिया यकीनन समझदारी से भरी तो होती है, लेकिन कुछ खोखलापन भी महसूस होता है. बनावटी भाव-भंगिमाएं, वैभव-प्रदर्शन, और अपनी सच्चाई से दूर रहना.. ये कुछ छोटी बातें बड़ों की दुनिया में आम हुआ करती हैं. बचपन की तो महक ही उसका भोलापन, कच्चापन और सच्चापन होता है. और वही तो दिल को छू जाता है, हमेशा, हमेशा के लिए.
अगर मैं नैन-नक्श की बात करूँ, तो गौर-वर्ण की वह बच्ची विशेष रूप से सुन्दर नहीं थी. लेकिन ये तो उसकी प्राकृतिक मुस्कान का ही जादू था, कि जिसने उस साधारण दिखने वाली बच्ची को भी मेरे लिए एक बहुत मनभावन चेहरा बना दिया. उसके बारे में कुछ भी नहीं पता मुझे, लेकिन वो कैसा जादू था, कि आज तक भी वह मेरी स्मृतियों में रहती है..! सिर्फ पांच मिनट की वो एक मुलाकात, एक भी शब्द की बातचीत नहीं, और मानो कोई अपना बन गया हो..
सचमुच, एक नन्ही-सी मुस्कान भी एक अनजाना-सा रिश्ता जोड़ दिया करती है.

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