Wednesday 7 March 2012

हमेशा तर्क नहीं...

हवा का रुख कभी-कभी इतना अजीब-सा हो जाता है, कि हम बिना कुछ सोचे-समझे उसकी दिशा में बस बढ़ते ही चले जाते हैं. सभी तर्क खामोश हो जाते हैं. बात एक बरस पुरानी है. आधी रात बीत चुकी थी. पर नींद मुझसे आँख-मिचौली खेल रही थी. कमरे में अंधेरा छाया हुआ था. और मेरी आँखें उस अंधेरे को चीरने की असफल कोशिश कर रही थी. आम तौर पर ऐसा कभी नहीं होता. पर उस रात अनिद्रा कुछ सोच कर ही मुझ पर हावी हो रही थी. अंधेरे में अचानक एक तेज़ प्रकाश दिखा.
एक-दो पल में अचानक उस प्रकाश में से एक आकृति प्रकट होने लगी. चाँदी जैसे पंख लगाये, वो तो एक परी थी. हैरत से मेरी आँखें, और मुँह दोनों खुले रह गये. पर तभी मुझे अपनी तार्किक बुद्धि पर तरस आने लगा, और 'भ्रम है', कह कर मैंने आँखें बंद कर ली. पर तभी एक आवाज़ गूँजी. मेरा नाम सुनाई दिया. आँखें खोलना तो अब मजबूरी बन चुकी थी. पर मैंने खुद को बहुत जोर से चिकोटी काटी. नहीं, वह सपना नहीं था. मुस्कुराती हुई उस परी को एकटक देखना मैंने शुरू किया. "हैरान मत होवो, यह तुम्हारी कल्पना नहीं है", कुछ और शब्द सुनाई दिए.
मेरी पलकें अब तक नहीं झपकी थी. और न ही कुछ बोलते बन रहा था. कभी किताबों में भी ऐसी बाल कल्पना की बातें पढना अच्छा नहीं लगता. और ऐसा अविश्वसनीय अनुभव खुद मुझे ही हो रहा था, कुछ समझ नहीं आ रहा था. नीले रंग के वस्त्र पहने वो परी मुस्कुराने लगी. इसके बाद उसने बहुत-सी बातें कही, जो मुझे शब्दश: याद हैं.
"परियों की कहानियाँ छोटे बच्चों को बहलाने के लिए सुनाई जाती हैं. पर इसका मतलब यह नहीं है, कि परियाँ  सिर्फ कल्पना-लोक की बातें हैं. हम परीलोक में रहते हैं, और पृथ्वी पर हमारी पूरी दृष्टि होती है.  चूँकि कोई हमारे होने पर विश्वास नहीं करता, इसलिए कभी हमें कोई बुलाता ही नहीं है. पर बुलाये जाने पर हम आते ज़रूर हैं, और मनचाही बात भी पूरी करते हैं", ऐसा उस परी ने कहा.
"लेकिन मैंने तो आपको बुलाया ही नहीं है", ऐसा मैंने कहना तो चाहा, लेकिन मेरी आवाज़ ही नहीं निकल पायी. पर वो भी परी थी.उसने खुद ही भाँप लिया. आगे वह बोली, कि "तुमने नहीं बुलाया. फिर भी मुझे आना पड़ा. क्योंकि तुम्हारे मन में एक इच्छा इतने वेग से उठी थी, कि जिससे पूरा परीलोक हिलने लग गया. और उस इच्छा के पूरा होने का वरदान देने के लिए मुझे आना ही पड़ा".
परी ने मुझे एक शक्ति का वरदान दिया. और कहा, कि "एक बरस के बाद यह शक्ति चली जायेगी. इसे वापिस पाने का तरीका होगा, कि इस बात को सब लोगों को बता देना. जो भी तुम पर विश्वास करेगा, उसे भी यह शक्ति मिल जायेगी, और तुम्हें भी हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हारी शक्ति वापिस मिल जायेगी." इतना कहकर वह परी गायब हो गयी. अंधेरा फिर से छाने लगा. और मेरा दिमाग चकराने लगा. उसके बाद मुझे बहुत गहरी नींद आ गयी.
भले ही ऊपर लिखी सब बातें बिलकुल अविश्वसनीय हैं, और 'पूरी तरह झूठ' भी. पर बुरा न मानें, होली है. हमेशा तर्क नहीं, और होली पर तो बिलकुल भी नहीं.
होली आप सब के जीवन में प्रसन्नता के नवीन रंग भरने वाली हो. हँसें, खेलें, खिलखिलाएँ!
शुभकामनाएँ.

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