एक सप्ताह पुरानी हो चुकी हैं होली की खिलखिलाहटें. रंगीन बौछारों के इस पर्व का जायका समय की हवा के साथ बदलने लगा है. आज के समय में जब पानी के स्रोत कम हो रहे हैं, आते समय में सिर उठा सकने वाली समस्याओं को भाँपते हुए कई कोनों से जल-संरक्षण की आवाजें आती हैं. और होली के दिन पानी के अधिक प्रयोग पर भी अंकुश लगाने का आह्वान होता है. 'सूखी होली मनाई जाए, सिर्फ अबीर-गुलाल के साथ', ऐसा संदेश जन-साधारण तक पहुंचाया जाता है. लेकिन समाज का एक वर्ग ऐसा भी है, जो इस संदेश पर आपत्ति दिखाता है.
इस वर्ग का ऐसा दृष्टिकोण है, कि भारतीय अस्मिता के साथ अभिन्न रूप से जुड़े पर्वों के परंपरागत स्वरूप के साथ खिलवाड़ क्यों किया जाए? तर्क में तो दम है. लेकिन घटते जल-स्तर का उत्तरदायित्व कौन लेगा? आज परम्पराओं का हवाला देकर होली का एक दिन तो मना लिया, लेकिन कल अगर बूँद-बूँद के लिए संघर्ष हो, तो परम्पराएं किस काम आएँगी? साथ ही साथ, विचारने का विषय यह भी है, कि होली के दिन तो जल-संरक्षण कर भी लिया. पर वर्ष के बाकी दिन, कोई लगाम ही नहीं है. हर सुबह अपनी मोटर-गाड़ियों को चमकाने के लिए घर-घर में जितना पानी बहाया जाता है, वह होली के दिन पर होने वाली पानी की खपत से कोई बहुत कम तो नहीं होगा! जबकि, एक गीले कपडे से भी रगड़कर साफ़ किया जाए, तो वाहन अच्छी तरह चमक सकता है. घर का आँगन एक बाल्टी पानी से पोंछ कर भी स्वच्छ किया जा सकता है, पर पानी बहा-बहा कर हर रोज़ उसे साफ़ करना भविष्य के किसी दिन हमारे ही लिए विकराल समस्या बनकर खड़ा हो सकता है. हम सब समझदार हैं. जानते हम सभी, सबकुछ हैं. पर मानते हम दो ही सूरत में हैं. या तो कोई फिल्म-अभिनेता आकर हमें समझाए, या फिर हमारी गलतियों से हमें नुकसान होने लग गया हो.
अब फिल्म अभिनेता खुद तो आकर कहने से रहे. जब तक उन्हें कोई पैसे नहीं देगा, तब तक वे हमें जल-संरक्षण का संदेश देने से रहे. और अगर हम उस दिन के इंतज़ार में हैं, कि जब जल-संकट चरम पर होगा, तब हम जल बचायेंगे, तो जान लें, कि तब तक यकीनन बहुत देर हो चुकी होगी. इसलिए, अपने विवेक का प्रयोग करते हुए, हमें खुद ही जल-संरक्षण के प्रति गम्भीर हो जाना चाहिए.
अबीर-गुलाल के संग जिस तरह हमने होली पर जल-संरक्षण में योगदान दिया, वह होली के बाद के दिनों के लिए एक प्रेरणा के जैसा हो जाए! जल की एक-एक बूँद कीमती है. वाहन चमकाने के लिए या जीवन चलाने के लिए, कहाँ हो जल का प्रयोग, हम खुद ही सोच लें! आखिर अपने वर्तमान, और भविष्य के ज़िम्मेदार हम खुद ही हैं.
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