Thursday, 23 January 2014

संस्कार

निशा के लिए इससे ज्यादा मुश्किल स्थिति क्या हो सकती थी, कि जब उसके पिता कैलाश नाथ एक चुनावी पार्टी के मुख्य चेहरा थे, और ससुर आलोक नाथ दूसरी पार्टी के! पार्टियां दोनों ही टक्कर की थी, इसलिए किसी भी एक को नकारना आसान नहीं था। ससुर चाहते थे कि बहु उन्हें ही अपना वोट दे और पिता भी चाहते तो यही थे कि बेटी का वोट अपने पिता को ही मिले, परन्तु वे भी पसोपेश की स्थिति में ही थे।
चुनाव का समय निकट आ रहा था। एक दिन निशा के पिता कैलाश नाथ अपनी बेटी के ससुराल आये हुए थे। दोनों समधि साथ बैठ कर चाय पी रहे थे, जब आलोक नाथ मन की बात पूछ बैठे। "निशा बेटी, तुम अपना वोट किसे दोगी? मुझे या कैलाश नाथ को ?"
निशा एक मिनट के लिए मौन रही। फिर गम्भीर मुद्रा में हो कर बोली, कि मैं तो अपने पापा को ही वोट दूँगी। आलोक नाथ का चेहरा यह सुनकर फ़क् सफ़ेद पड़ गया। खुद कैलाश नाथ से भी कुछ कहते न बना। और यह देख कर निशा ने ही चुप्पी तोड़कर बोलना शुरू किया।
"ससुर जी, अगर आप चुनाव जीतेंगे, तो घर में करोड़ों रुपये आ जायेंगे। लेकिन पापा के यहाँ धन नहीं आ पायेगा। पापा जीतते हैं तो उनके पास करोड़ों रुपये आयेंगे। आपका पैसा उनको नहीं दिया जा सकता क्योंकि वो पैसा बेटी के ससुराल से है। मुझे पता है कि मेरे पापा बेटी के घर का पैसा नहीं लेंगे। लेकिन उनके घर का धन तो आपको दिया जा सकता है न! नतीजा, दोनों घरों को धनलाभ हो सकेगा!"
निशा के ससुर यह सुनकर भावुक हो उठे। "कैलाश नाथ, पिछले जनम में ज़रूर कुछ अच्छे करम किये होंगे जो तुम जैसा समधि मिला है। मैं धन्य हो गया, कैलाश नाथ !"
कैलाश नाथ की आँखें भी भर आई। "बेटियां होती ही ऐसी हैं! 'संस्कारी'!"
"सच कैलाश नाथ, संस्कार सिर्फ आलोक नाथ ही नहीं, कैलाश नाथ भी दिया करता है।"आँखें पोंछते हुए आलोक नाथ धीरे-धीरे बुदबुदाये। 

रिटन वैल बाय टिम्सी मेह्टा :P

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