Tuesday, 10 December 2013

"मैं कौन हूँ ? कहाँ हूँ मैं?"

कुछ ही दिन पहले की बात है। रात होने जा रही थी। आँगन में अँधेरा था। किसी काम से आँगन में जाना पड़ा तो अँधेरे के कारण एक खम्बा मुझे दिख न सका। फिर क्या होना था, ज़ोर से चिल्लाने के दो मिनट बाद जब होश संभाला तब मुझे पता चला कि मेरे सर पर ज़ोर से चोट लगी है।

"मैं कौन हूँ ? कहाँ हूँ मैं?", जल्दी-जल्दी खुद से सवाल किया। जवाब सही मिला तो जान में जान आई। शुक्र मनाया मैंने कि याद्दाश्त नहीं गयी।
कुछ दिन तक ज़ोरदार सरदर्द रहा, पर अब बिलकुल ठीक हूँ। सब कुशल-मंगल है। यह महत्त्वपूर्ण समाचार देर से देने के लिए क्षमा करें, पर मैं भी क्या करूँ! मुझे छोटी-सी चोट लगने के बाद जिस तरह से मुझे बधाई देने वालों का . . . म. म. मतलब हाल-चाल पूछने वालों का जो ताँता लग जाता है, उसे संभाल पाना मुश्किल हो जाता है।

तो . . . बस यही बताना था। हो गया।

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