Monday, 27 January 2014

ज़िंदगी की शक्ल

कच्ची-पक्की पगडंडियों पर 
पलती ज़िंदगी
है तो बिलकुल 
मोम सी..
पिघले जाती है 

पलों की आंच में,
और 

पलों के दरमियान ही
जम जाती है 

आधी-टेढ़ी होकर..
हैरां-परेशां आँखों की जोड़ी
पलकें 

झपका भर पाती है,
और
ज़िंदगी की 
शक्ल बदल जाती है.

-टिम्सी मेहता

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