मिठास एवं प्रकाश के साथ माता लक्ष्मी का स्वागत करने का राष्ट्रीय पर्व है दीपावली। और न जाने क्यों हम हर मायने में इस पर्व के मायने उलट रहे हैं! मिठास हेतु जो मिष्ठान्न बाज़ार से लेते हैं, उनमें कृत्रिम रंग और कीटनाशकों की मात्रा बढ़ती जा रही है, पर किसी पर असर नहीं है। प्रकाश हेतु मिट्टी के पारम्परिक दीये कहीं दिखते ही नहीं हैं, जिनसे कुम्हार को भी रोज़गार प्राप्त हो पाता! बिजली की लड़ियों में सुंदरता तो है, पर स्वाभाविकता नहीं!
बाकी रही माता लक्ष्मी के स्वागत की बात, रात भर बारूद-पटाखे फोड़कर मेहनत से कमाये धन को भस्म करके समृद्धि की देवी को कैसे प्रसन्न किया जा सकता है, समझ में नहीं आता।
घर पर ही मावे और मेवे से स्वादिष्ट पकवान बनाकर, मिट्टी के नन्हे दीपक जगमगाकर इस पर्व को प्रियजनों-मित्रों के संग मनाया जाए, और इसके साथ ही कुछ मिठास और प्रकाश दरिद्र-नारायण को भी अर्पण की जाए। झुग्गी-झोंपड़ियों में रहने वाले छोटे-छोटे बच्चों की आँखें जब मिठाई देखकर टिमटिमाने लगती हैं, तब मन में प्रसन्नता का प्रकाश स्वयं ही भर उठता है। अगर ऐसी हो दीपावली, तो आनंद ही कुछ और हो!
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