Wednesday, 8 February 2012

दुनिया गोरखधंधा है...

कभी बचपन में ये पंक्ति सुनी थी, कि "दुनिया गोरखधंधा है".. उस समय दुनिया तो देखी ही नहीं थी. 'गोरखधंधा' शब्द का अर्थ जानने की कोशिश की. अर्थ बताया गया, पहेली..! यानि कि दुनिया में जो होना चाहिए, वह होता नहीं. और जो नहीं होना चाहिए, वह हो जाया करता है. बस, यही है, 'गोरखधंधा'. ये सुनकर प्रश्न उठा, कि 'अगर आशा ही उसकी की जाये, जो नहीं होना चाहिए, क्या तब भी परिणाम विपरीत ही मिलेंगे? ' 
बाल-बुद्धि तो ऐसी ही होती है, प्रश्नों से भरी हुई. पर मेरे मन में तो आज तक भी प्रश्नों का दौर थमा नही है. ज़रा देश-विदेश की ताज़ा ख़बरें पढने के लिए समाचार-पत्र क्या उठाया, प्रश्नों का  झंझावात छिड़ने के लिए कहीं तैयार होने लगता है. बड़ा अचम्भा होता है आये दिन हो रहे घोटालों की राशि पढ़ते हुए. एक-एक व्यक्ति के पास इतना धन, जो पूरी जिंदगी में ठीक-ठीक गिना भी न जा सके! और ऐसे किसी सिर्फ एक व्यक्ति का धन ही काफी हो इस देश की 'बड़ी' आबादी का भला करने के लिए! चुटकी यह है, कि वह अमीर व्यक्ति अपना जीवन केवल खादी के कपड़ों में ही व्यतीत कर देता है! पैसा कहीं किन्ही बैंकों में बर्फ की तरह जमा रह जाता है. क्या यहाँ प्रश्न नहीं उठना चाहिए, कि आखिर वह पैसा किसके काम का? उत्तर न मिलने पर बेचैनी होती है, मन में आता है, चलो दूसरे पन्ने पढ़े जाएँ. 
मनोरंजन जगत के पन्नों पर नए प्रश्न मेरी प्रतीक्षा कर रहे मिलते हैं. अभिनेताओं के प्रशंसकों की बढती संख्या मेरा ध्यान खींचती है. प्रशंसा का कोई कारण समझ नहीं आ पाता. वास्तविक जीवन तो इन अभिनेताओं का जिस प्रकार का होता है, वह किसी दृष्टि से अनुकरण के योग्य नहीं लगता. और पर्दे पर दिख रहे झूठे जीवन की प्रशंसा का कोई अर्थ समझ नहीं आता. हाँ, अभिनय-कला की स्वीकृति तक तो ठीक है. पर जिस देश में आबादी का बड़ा हिस्सा 'बड़ी' समस्याओं से जूझ रहा है, वहाँ देश का छोटा हिस्सा इतने छोटे स्तर की अभिरूचियों से जुड़ा हुआ हो, तो विकासशील से विकसित होना आसान कैसे हो सकता है?
किसी तीसरे पन्ने पर देश के चर्चित चेहरों की बीमारियों की खबरें, उन पर चर्चा पढने को मिल जाती है. अब ये समझ में आ जाता है, कि अगले कुछ दिनों तक प्रशंसक-वर्ग की ऊर्जा अपने प्रिय चेहरे के कुशल-मंगल की कामनाओं में निवेशित होने वाली है. यह उस देश की कहानी है, जहाँ बड़ी आबादी को तो खुद भी खबर नहीं होती, कि उन्हें कोई रोग है या नहीं. पर यहाँ उस व्यक्ति, जिसके नाम, और चेहरे दोनों में चमक है, के रोग की खबर हमें रुला भी सकती है. 'क्या राष्ट्र-विकास में इन चेहरों की चमक किसी काम आई होती है, जो हमें इनसे इतना लगाव होता है?', एक और प्रश्न उठता है.
बड़े लोगों के घोटाले, बड़े लोगों की प्रशंसा, बड़े लोगों के रोगों की बड़ी खबरें पढकर बड़ी आबादी की समस्याओं पर प्रश्न उठते ही जा रहे हैं मन में! गोरखधंधे के न जाने और कितने समाचार पढने अभी बाकी हैं...

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