सर्दियों
की गुनगुनी धूप एक आमंत्रण-पत्रिका के जैसी होती है. घर के भीतर के सब काम
जल्दी-जल्दी समेटकर, आँगन की ओर बढ़ने का एक न्योता आता है. और हिम-देवता
के खेल के फल-स्वरूप जो स्वाभाविक जीवन धीमा पड़ गया होता है, इस गुनगुनी
धूप के संस्पर्श से फिर से मुखर होने लगता है. ऐसी इस धूप में बैठना, और
प्रकृति के रंगों को देख-देख हैरान होना अच्छा लगता है.
बगिया में खिल उठे गुलदाउदी, गेंदा, गुलाब और डेहलिया किसी भी प्रकृति-प्रेमी के लिए मुस्कान का विषय हो जाते हैं. भरी धूप की रौशनी इन फूलों की पंखुड़ियों के रंगों को और भी प्रखर कर देती है. चारों दिशाओं में फैली ये पंखुड़ियां इन फूलों की प्रसन्नता की कहानी कह रही-सी लगती हैं. खुद में ही सिमटे जीवन को खिलने, और फैलने की प्रेरणा देती-सी लगती हैं. धूप सेंकते-सेंकते मुझे यों याद आता है, कि कैसे एक अंगुली बराबर पौधा हम लाये थे, जो आज एक सुन्दर प्रेरणा में परिणत हो चुका है! इतना छोटा-सा था, कि उसे पौधा कहना भी कुछ अजीब ही लग रहा है.
नन्हा-सा वो एक बूटा था. उसे हाथों में उठाकर घर में लाना मन की माटी पर गहरा अंकित एक ऐसा एहसास था, जिसे मन की तरंगें ही पढ़ सकती हैं. एक नया, सुकोमल जीवन मेरे घर में प्रवेश कर रहा था. बिलकुल एक नन्हे शिशु के जैसा, जिसे गोद में उठाने का आनंद शाब्दिक अभिव्यक्ति की सीमा से परे होता है. हौले-हौले इस बूटे के नन्हे पत्तों पर मैंने हाथ भी फेरा था. उस बूटे को लाकर अपने घर की धरती में रोंपते हुए ठीक इसी दिन की कल्पना की थी, कि मेरे घर का आँगन इसकी फुलवारी से रंगीन हो उठेगा. हर दिन, जाड़ा, धूप, पानी, और मेरी आशाएं इस पौधे को सींचते रहे. धीरे-धीरे नए पत्ते फूटे. फिर कलियाँ दिखी. और एक दिन प्रकृति ने अपनी स्नेह-वृष्टि से पौधे को पूरी तरह नहला दिया, जब वो कलियाँ सम्पूर्ण पुष्प में रूपांतरित हो उठी. और अब, उस पुष्प की शोभा किसी काव्यकृति में गूंथे जाने जैसी हो चुकी है.
ये रंगों की तरंगें, उन्मुक्त प्रस्फुटन, और स्वागत भरी मुस्कान मेरे घर के आँगन में लेकर आये ये फूल-पौधे मेरे जीवन का कितना अभिन्न अंग हो गए हैं. इनका जीवन मेरे जीवन को नवीनता, आशाओं, और प्रेरणाओं से भरे रखता है. ये गुनगुनी धूप सेंकते-सेंकते, मेरा मन प्रकृति के विलास को को देखकर बस यूँ ही रोमांचित होता रहता है.
बगिया में खिल उठे गुलदाउदी, गेंदा, गुलाब और डेहलिया किसी भी प्रकृति-प्रेमी के लिए मुस्कान का विषय हो जाते हैं. भरी धूप की रौशनी इन फूलों की पंखुड़ियों के रंगों को और भी प्रखर कर देती है. चारों दिशाओं में फैली ये पंखुड़ियां इन फूलों की प्रसन्नता की कहानी कह रही-सी लगती हैं. खुद में ही सिमटे जीवन को खिलने, और फैलने की प्रेरणा देती-सी लगती हैं. धूप सेंकते-सेंकते मुझे यों याद आता है, कि कैसे एक अंगुली बराबर पौधा हम लाये थे, जो आज एक सुन्दर प्रेरणा में परिणत हो चुका है! इतना छोटा-सा था, कि उसे पौधा कहना भी कुछ अजीब ही लग रहा है.
नन्हा-सा वो एक बूटा था. उसे हाथों में उठाकर घर में लाना मन की माटी पर गहरा अंकित एक ऐसा एहसास था, जिसे मन की तरंगें ही पढ़ सकती हैं. एक नया, सुकोमल जीवन मेरे घर में प्रवेश कर रहा था. बिलकुल एक नन्हे शिशु के जैसा, जिसे गोद में उठाने का आनंद शाब्दिक अभिव्यक्ति की सीमा से परे होता है. हौले-हौले इस बूटे के नन्हे पत्तों पर मैंने हाथ भी फेरा था. उस बूटे को लाकर अपने घर की धरती में रोंपते हुए ठीक इसी दिन की कल्पना की थी, कि मेरे घर का आँगन इसकी फुलवारी से रंगीन हो उठेगा. हर दिन, जाड़ा, धूप, पानी, और मेरी आशाएं इस पौधे को सींचते रहे. धीरे-धीरे नए पत्ते फूटे. फिर कलियाँ दिखी. और एक दिन प्रकृति ने अपनी स्नेह-वृष्टि से पौधे को पूरी तरह नहला दिया, जब वो कलियाँ सम्पूर्ण पुष्प में रूपांतरित हो उठी. और अब, उस पुष्प की शोभा किसी काव्यकृति में गूंथे जाने जैसी हो चुकी है.
ये रंगों की तरंगें, उन्मुक्त प्रस्फुटन, और स्वागत भरी मुस्कान मेरे घर के आँगन में लेकर आये ये फूल-पौधे मेरे जीवन का कितना अभिन्न अंग हो गए हैं. इनका जीवन मेरे जीवन को नवीनता, आशाओं, और प्रेरणाओं से भरे रखता है. ये गुनगुनी धूप सेंकते-सेंकते, मेरा मन प्रकृति के विलास को को देखकर बस यूँ ही रोमांचित होता रहता है.
4 comments:
बहुत सुंदर भाव संजोये है और उनकी अभिव्यक्ति भी बहुत सुंदर .
त्वरित उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु सादर आभार..!
baut sunder...............
सादर धन्यवाद..!प्रकृति के तो हर ज़र्रे में प्रेरणाएं बिखरी पड़ी हैं..! :)
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