अलबेले मीतों के संग वो
पल थे कभी सुनैले !
पल थे कभी सुनैले !
अब मेरा संगी आसमां,
मेरे घर की ज़मीं !
देखी होगी दुनिया-भर ने,
मस्ती में मेरी हस्ती !
मेरी माटी ने बस चखी,
है इन नैनों की नमी !
घुमड़-घुमड़ कर कितने कोने,
देखे-भाले होंगे यों !
हर इक बारी, बग्गी मेरी,
अपनी नगरी आ थमी !
यहाँ गुज़ारे सब सुन्दर पल,
भूले से भी न भूलेंगे !
आते पल भी यहीं गुज़ारूँ,
इसी चाह में आस रमी !
मेरा तो ये ही गुलिस्तां,
ये ही मेरा कश्मीर !
ना जाना परदेस मुझे,
वहाँ मेरी माटी की कमी..!
:- टिम्सी मेहता.
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