Tuesday 13 December 2011

पहेली ही है जीवन...

पहेलियाँ बुझाना मुझे बहुत अच्छा लगता है, चाहे वो शब्दों की हों, या गणित की. एक तरह की खुजली ही होती है ये भी. जब तक सही उत्तर न मालूम हो जाए, चैन नहीं आता. फिर भले वो खुद ही मिल जाए, या किसी विशेषज्ञ की सहायता ली जाए. वैसे, अगर सही प्रक्रिया का ज्ञान हो, तो दिखने में मुश्किल पहेलियाँ भी चुटकियों में हल हो जाती हैं. पर एक पहेली ऐसी भी है, जिसको बुझा पाना मेरे लिए तो आज तक संभव नहीं हो पाया.
जीवन नामक ये पहेली बड़ी ही अजीब है. कई रास्तों से घूम-घूम कर इसकी विषयवस्तु, और प्रक्रिया समझने की कोशिश की. तथाकथित विशेषज्ञों के विचार जानने के प्रयास किये. पर परिणाम, वो तो और भी उलझाने वाले! कहीं-कहीं जीवन का रूप इतना सरल और मनोहर नज़र आता है, कि भाग्यवादी होने का मन होने लगता है. आवश्यकता से पहले ही मनचाही वस्तु सामने आ जाया करती है वहाँ. वो रूप देखकर लगता है, कि सचमुच, ईश्वरीय वरदान ही तो है जीवन! और तभी, जीवन के किसी दूसरे रूप से मुलाकात हो जाती है, जहाँ कोशिशें बहुत होती हैं. दिन-रात दिमाग के घोड़े दौड़ाना, अवसर खोजना. और नतीजे भी अच्छे ही दिखते हैं. जहाँ निशाना लगाया था, तीर ठीक वहीँ जाकर लगा. इस रूप को देखकर यकीन हो आता है,  कि कर्मक्षेत्र है ये जीवन. और इस कर्मक्षेत्र में जितना गहरा गोता होगा, उतने ही महंगे मोती मिलेंगे. ये देखकर, वो पहेली थोड़ी-बहुत सुलझने लगती है. पर अचानक ही, किसी दिन, किसी रस्ते पर जीवन का एक नया रूप दिख जाता है. दिन भर पसीना बहाना, सर्दी-गर्मी-तबीयत-हालात, हर बहाने को किनारे लगाकर, मुसीबतों के साथ रस्साकशी करना! और दिन के अंत में, प्याज के संग सूखी रोटी, हलक से उतारना! ज़िन्दगी भर गद्दे वाले पलंग पर सोने का सपना-भर देखना! वैसे किस्मत कभी-कभी अपनी पैंतरेबाजी दिखाती है इनके साथ भी! कोई झुग्गी का बच्चा अंतर्राष्ट्रीय फिल्म का कलाकार बन जाता है, तो कभी कोई किसी गहरी सुरंग में गिरकर राष्ट्रीय सुर्खियाँ प्राप्त कर लेता है. और ऐसे इक्का-दुक्का को देखकर बाकी के ढेरों चेहरे उस भाग्य की ओर ताकने लग जाते हैं, जो युगों से मुँह फेरकर बैठा होता है इनसे. देश में विदेशी धन के निवेश का प्रश्न हो, या राज्यों के टुकड़े होने पर बहस हो, इनके हाथों की नियति तो झाड़ू-पोंछा ही रहनी है. जीवन का ये रूप देखकर, पिछले दोनों रूप भ्रामक लगने लगते हैं. और तभी, एक चौथा रूप सामने आ जाता है. उन लोगों का, जो भाग्य की मार तो खाए ही होते हैं, पर कर्म का भी आश्रय नहीं लेते. शायद उनका भी कोई दृष्टिकोण होता हो इसके पीछे, या शायद कुछ कटु अनुभव रहे हों, जो उन्हें सामान्य पटरी पर आने न देता हो!
इन चार रूपों को देखने-जानने के बाद, कुछ उत्तर तो नहीं मिलता जीवन की पहेली का. बस इतन ही सही लगता है, कि भाग्य अनुकूल हो न हो, कर्म का प्रतिफल मिले न मिले, जीवन रूकता कभी नहीं है. तो हम भी बस कोशिश करते रहें, चलते रहें! शायद किसी मोड़ पर जीवन के कदमों के संग हमारे कदम भी मिल ही जाएँ...!

4 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

बिलकुल सटीक बात कही आपने।

सादर

Media and Journalism said...

प्रोत्साहन हेतु सादर आभार.

सागर said...

sarthak prstuti....

Media and Journalism said...

प्रोत्साहन हेतु सादर आभार.