Friday 14 October 2011

यूँ भुला न पाएंगे. . .



सुना तो हमेशा से था, कि संगीत का रिश्ता सीधे रूह से होता है, पर समझ पहली बार आई है ये बात. किस तरह, एक इंसान का जाना इतने लोगों को जज़्बाती कर गया..!! देश के नामी लोगों से लेकर, आम आदमी तक, हर एक के लफ़्ज़ों का यही रंग..! 'जगजीत सिंह', जिन्होंने ग़ज़ल गायकी को एक नयी मुकाम दी.. ग़ज़लों की मद्धिम हो रही रोशनी को एक भरपूर लौ दिलाई.. जिन्होंने शब्दों को जज्बातों की एक मखमली उड़ान दी..! ईश्वर की देन एक सुनहरी आवाज़ को गहन तपस्या, और लगन के ताप से चमका कर कुंदन बना दिया.
कौन नहीं मुरीद होगा ऐसी अहसासों की भाप से भीगी हुई उस जादुई सरगम का, जो हर एक मन के लिए सुकून की गुंजाइश के साथ बुनी गई हो!  मीठे, सुरीले , शांत और आत्मिक रस से भरे संगीत के चाहने वाले हर एक दिल में कहीं न कहीं एक मायूसी का एहसास उठ आया होगा जगजीत सिंह के दुनियावी सफ़र के पूरे होने की खबर सुनकर. सच, एक खालीपन मुझे भी महसूस हुआ. जब-जब उनका संगीत सुना, तब तब खुद को किसी और जहाँ मे पाया..और उस जहाँ की ख़ास बात ये होती थी, कि वहाँ पर कभी कोई दुःख नहीं होता था. वहाँ तो बस एक अलमस्ती होती थी, जिसमे दूर-दूर तक कोई कमी नहीं. मन में एक ख़याल आया, कि ऐसी वो क्या बात थी, कि इतने ग़ज़ल गायकों के बीच जगजीत सिंह हमेशा अलहदा, निराले रहे! 
दरअसल, उन्होंने बेईमानी नहीं की कभी सुरों के साथ. जब भी गाया, जो भी गाया, दिल से गाया, भरपूर गाया. मिसाल तो फिर खुद-बखुद बननी ही थी. दिल से निकले अलफ़ाज़ की अगर कोई मजबूरी होती है, तो वो है, दुसरे दिल को छूना. चाह कर भी वो इस कोशिश में नाकाम नहीं रह सकता.  और जगजीत जी का गले से निकलने वाले शब्द अपने आप को इस मजबूरी से घिरा ही पाते थे. जिस जिस गीत को होठों से छुआ, उस उस गीत को अमर कर दिया. नतीजा सामने, उनकी आवाज़ के तलबगार बढ़ते ही चले गए, हर एक ग़ज़ल के साथ, हर एक सुरीली शाम के अन्जाम के साथ. 
एक अजीब सा विचार घेर रहा है मेरी कलम को इस वक्त. आज हम उस दुनिया में जी रहे हैं, जहां अपने भी अपनों का बिछोह महसूस नहीं किया करते. पर उस पराये के लिए जाने कितने जज़्बात उमड़ आये..! जहां ख़ून का रिश्ता भी धोखा दे जाता है, उस दुनिया में अजनबियों की भी आँखें भर आई आपके रुखसत होने पर, तो ये एक अनोखी ही बात है. महज़ अपने संगीत, और ज़हानत के साथ आपने अपने श्रोताओं को अपना बना लिया, ये तो बेशक एक जादुई शख्सियत ही कर सकती है. सुरों से दोस्ती तो इमानदारी से निभायी ही, साथ ही ज़िन्दगी भी बेदाग़ जी कर दिखा दी. जिस दुनिया से उनके ताल्लुकात रहे, उसमे अपना नाम ऊँचा करना तो बड़ी बात है ही, पर उस नाम तो साफ़ रख पाना, ये हर कोई नहीं कर पाता. और शायद तभी, एक अनदिखा धागा बंध गया था उनके, और उनके श्रोताओं के बीच..! उनकी ज़िन्दगी किस दर्द से दो-चार होकर रही, वो तो किसी से छिपा नहीं. पर दिल के दर्द को होठों की मुस्कान से ज़ाहिर करने का भी एक अनूठा शउर जानते थे सुरों के वो बेताज बादशाह..!
उनके जाने से दिल की जो गली खाली-सी महसूस हो रही है, उसे यूँ उन्हें याद कर भरने की कोशिश करनी चाही थी. पर इतना लिख गुजरने के बाद, अब एहसास हो रहा है, कि जिस शख्स का सीमाओं से ताल्लुक ही नहीं रहा,  उसको श्रद्धांजलि, चंद शब्दों में देने की, कोई सोच भी कैसे सकता है! सीमाओं में रहने वाले कभी फलक तक नहीं पहुँच सकते. और फलक से दिल तक बसने वाले को चार लफ़्ज़ों में कौन कैद कर सकता है! आप तो बस दिलों में जिंदा रहेंगे, हमेशा, हमेशा, और हमेशा..! 
इस जग को जीत कर जहाँ तुम चले गए, वहाँ खूब सुकून हो, बस यही दुआ है.                          
                      

1 comment:

Sunil Kumar said...

जगजीत सिंह को मेरी विन्रम श्रधांजलि ......