Sunday, 30 December 2012

विश्वगुरु भारतवर्ष की जय।

भारत का एक आम आदमी भ्रष्टाचार से उतना ही दूर होता है जितना दूर उससे भ्रष्टाचार करने का 'मौका' होता है। हम लोगों की तो ऐसी ही कहानी होती है, कि जिस दिन रोटी मिल गयी तो वाह-वाह, और जिस दिन न मिली तो खुद को 'महान व्रतधारी' घोषित कर दिया। पता है मुझे, कि बहुत से अपवाद हैं यहाँ, पर देखने की बात है, मौका आते ही उनका भी क्या होगा -----
 मुझसे पूछा जाए कि भारत की दुर्दशा क्यों हो रही है, तो मेरा जवाब तो यही होगा, कि सरकार बाद में, आम आदमी पहले दोषी है। जैसा कि सुना करते हैं, आततायी के अत्याचार से समाज को उतना नहीं भोगना पड़ता, जितना सहन करने वाले की चुप्पी से। जो कभी एकजुट नहीं हो सकते, और कभी भी खुद के छोटे-से फायदे के लिए दुसरे को बड़ी-से-बड़ी मुसीबत में डाल सकते हैं, वो शासन से ईमानदारी की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?
विश्वगुरु भारतवर्ष की जय।

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