Friday 13 April 2012

मेरे अपने वो पल..


छोटी-छोटी सी बातों में जो प्यारी-प्यारी सी खुशियाँ छिपी होती हैं, वे भले ही ज्यादा समय तक रहने वाली न हों. लेकिन उनकी मीठी स्मृतियाँ जीवन में हमेशा खुशबू बिखेरे रखती हैं. विश्वविद्यालय के एक कक्ष में बैठे हम लोग बढती जा रही गर्मी से परेशान हो रहे थे. गर्मी की शुरुआत में ही जब भरगर्मी पड़ने लगे, तब कोई क्या चाहेगा! कहीं से हवा के ठन्डे-ठन्डे झोंके लहरा कर आ जाएँ, और ये उमस, पसीना, काफूर हो जाए.. ऐसे ही ख़्वाब लेते हम सूर्यदेव के अतिसक्रिय धूप-विभाग की कार्यप्रणाली में परिवर्तन की मांग कर रहे थे.
क्यों नहीं कभी यह धूपरानी भी छुट्टी ले लिया करती! कभी यह अनुशासनप्रिय धूप अपने सर्दी वाले गाँव चली जाए, जहां कोई इसका भावभीना स्वागत करना चाह रहा होगा. ऐसी शिकायतों के साथ विश्वविद्यालय में हमारी टोली किसी तरह समय काटती अक्सर नज़र आया करती है. और जिस प्रकार विभागों में कभी-कभी अचानक ही कोई अफसर गश्त पर आ जाया करते हैं, उसी तरह उस प्रिय दिन इंद्र-देवता भी बारिश के रूप में अचानक प्रकट हो गए. यकीनन यह एक बड़े उपहार के समान था. जब बाहर का वातावरण यकायक इतना सुहाना हो जाता है, तो भला कमरे की उमस में किसका ही मन लगता है! हमारी टोली बढ़ने लगी विश्वविद्यालय के प्रांगन की ओर. ओट में खड़े होकर टप-टप टपकती बूंदों को बड़ी हसरत से निहारने लगे. और कुछ ही पलों में कदम मनचाही दिशा की ओर हमें ले जा रहे थे. खुले आकाश के नीचे बारिश में घूमने का हम सब लुत्फ़ उठाने लगे. हल्की-हल्की बूँदाबांदी थी. और हर-एक बूँद में ताज़गी का खजाना था. गर्मी के तोहफे के रूप में जो त्यौरियां चेहरे से चिपक चुकी थी, उनकी जगह हम सबके चेहरे उदार मुस्कान से भर उठे. ये बारिश भी कैसी अद्भुत होती है! पानी की नन्ही-नन्ही बूँदें एक अनोखी उमंग से भरी लगती हैं, जब वो सीधे आसमान से उतर रही होती हैं. हरियाली से भरी हुई विश्वविद्यालय की हर दिशा की रौनक देखते ही बन रही थी. और ऐसे में मन अपने ही संगीत पर थिरक रहा था. उन कुछ पलों में हमें अगला-पिछला कुछ भी याद नही था. हरे-भरे पत्तों के बीच झूमते-इठलाते रंग-बिरंगे फूलों को निहारते हुए, कुछ देर बस यूँ ही हौले-हौले टहलते रहे. हथेलियाँ आसमान की ओर फैला कर हाथों में पानी की कुछ-कुछ बूँदें इकठा कर-कर के उन्हें अपने आस-पास बिखराते रहे.  
स्वाभाविक मुस्कान, मृदु हास के बीच कुछ पल प्रकृति के आँगन में मित्र-मण्डली के बीच अपने-आप के साथ बिताना सचमुच इतने उत्साह, और उमंग से भरा हुआ था, कि मन की सब अधखुली पंखुड़ियां फ़ैल उठी. बहुत ज्यादा देर के लिए तो वो बादल बरसते नहीं रहे, पर उस थोड़ी सी देर में भी हमने वो पल भरपूर जी लिए. वो सुहानी स्मृति मन के पुष्प में एक बहुत प्रिय सुगंध भर कर गयी है. जीवन के वो कुछ पल सिर्फ 'मेरे' थे. 

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